विश्वास


मौसम सुहाना था। हवाई जहाज बादलों को चीरता हुआ अपनी मंजिल की ओर बढ रहा था। सारे यात्री व्यस्त थे। कुछ सो रहे थे, कोई चाय का आनंद ले रहा था। कुछ लोग आपस में हंसी मजाक कर रहे थे। एक पांच छह साल की बच्ची जिग्सा पजल खेल रही थी। अचानक मौसम बदल गया, हवाएं तेज हो गई, तेज बरसात होने लगी और जहाज तुफान में घिर गया। सभी को सीट बेल्ट बांधने की चेतावनी दी गई। जैसे जैसे जहाज के हिचकोले बढने लगे, यात्री चीखने चिल्लाने लगे। तुफान ओर बढा तो सभी यात्री रोने लगे। सभी यात्री भगवान से जीवन बचाने की प्रार्थनाएं करने लगे। लेकिन वह छोटी बच्ची अब भी शांत बैठकर अपना पजल खेलने में मस्त थी। करीब एक घंटे की कशमकश के बाद हवाई जहाज सुरक्षित एयरपोर्ट पर उतर गया। सभी लोग जान बचाने का शुक्रिया अदा कर रहे थे। बच्ची के पास बैठे यात्री से जब रहा न गया तो उसने बच्ची से पूछा जब जहाज तुफान में फसा हुआ था, सभी यात्री रो रहे थे और बचने की दुआ मांग रहे थे, परेशान हो रहे थे, तुम्हे डर नहीं लग रहा था क्यों। बच्ची ने मुस्कुराहट के साथ कहा अंकल इस हवाई जहाज के पायलट मेरे पापा हैं। मुझे पुरा विश्वास था कि वे मुझे सही सलामत उतारेंगे। किसी ने ठीक ही कहा है कि जहां पर विश्वास होता है, वहां संदेह की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहती। 

लेखक: वंदना 



Comments